हर पंथ की देखी सनातन में व्याख्या!!#अशोकबिन्दु

हम कहते रहे हैं अब मानवता व प्रकृति अभियान को वर्तमान समाज व उसकी सामजिकता नहीं चाहिए। पांच हजार वर्ष पहले ही श्रीकृष्ण कह गए कि " दुनिया के धर्मों को त्याग मेरी शरण में आ।" यदि वर्तमान में जिंदा महापुरुषों  को सम्मान नहीं, उन्हें कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं तो समझो कि समाज व उसकी सामजिकता में धर्म व ईश्वर की बात बेईमानी है।::#अशोकबिन्दु


समाज व उनकी सामजिकता कायर व पाखंड!! #अशोकबिन्दु
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एक इंसान की समाज व सामजिकता से नहीं इंसान से आवश्यकताएं पूरी होती हैं। समाज व सामजिकता एक इंसान की समस्याओं का समाधान करने में असमर्थ ही होता है। 


समाज में एक समस्या है - दहेज। कन्या पक्ष को इस कारण कर्ज में डूब जाना पड़ जाता है। रिश्ता निभाने ,चलाने के बीच आर्थिक पहलू भी होते है लेकिन रिश्ता में महत्वपूर्ण रिश्ता निभाना है परस्पर सहयोग के माध्यम । रिश्ता जोड़ने का मतलब किसी का कर्ज में डूबना नहीं होना चाहिए। 

रिश्तों को निभाने में हमने देखा है कि अनेक चीजें निरर्थक होती हैं जो कि वास्तव में एक इंसान के जीवन में सहायक नहीं होतीं। इसी तरह के सामाजिक व सामाजिकता के साथ भी यही होता है।

सामाजिक वजिकता वास्तव में ज्ञान, प्रेम, चेहरे की सुरक्षा, कानूनी स्टाफ़, योग्यता-करुणा आदि। ।

बदलते समय में भी बदलते हैं। ऋतिक कबीर, रेजीडर्स, गुरु नानक, राम मोहन राई, बत्ती फुले आदि के साथ संबंधित के लिखने वाला आज भी सामाजिक व सममजिकता के अन्य सोहन है। कूड़ा की तरह व्यवहार करने वाले पर भी लागू किया गया था।

सोशल वसमाजिकता के मामले में यह ठीक है .. इस तरह के लोग क्या करें?


दुनिया के हम्मों में ईश्वर और आधुनिक आधुनिकीकरण की बात है, ऐसी प्रकृति की प्रकृति अपराध कम है, कानूनी अपराध है। धर्म व ईश्वर पर भी सामाजिक और सामाजिकता की धारणाओं में ऐसी धारणाएँ होती हैं जो लोगों में व्यवहार करती हैं।


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8 Comments

Aniya Rahman

11-Jul-2022 07:21 PM

Nyc

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Seema Priyadarshini sahay

11-Jul-2022 04:29 PM

बहुत खूबसूरत

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Chudhary

11-Jul-2022 11:47 AM

Nyc

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